Sunday, December 26, 2010

पूरे देश - दुनिया में नहीं होगा मेरे गांव जैसा कोई दुसरा गांव .......!

                       पूरे देश - दुनिया में नहीं होगा मेरे गांव जैसा कोई दुसरा गांव .......!
                                        श्रीमति रूक्मिणी रामकिशोर पंवार
गांव हमारी कल्पना से परे होता हैै. हर आदमी का गांव होता है वह इसलिए कि जो आज शहर कहे जाते है , वे कभी गांव हुआ करते थे. गांव से शहर बना , शहर से नगर , नगर से महानगर , आने वाले कल में महानगर क्या बनेगें कहां नहीं जा सकता. मेरा भी गांव पूरे देश और दुनिया में सबसे अलग - थलग एवं निराला है. मैं अपने आप को उस गांव में जन्म लेने पर अपने आप को सौभाग्यशाली समझती हँू. 199.11 हैैक्टर क्षेत्र में 77. 56 उतर 21.52 पूर्व माध्य समुद्र सतह से 650 मीटर की ऊँचाई पर बसा मेरा गांव बैतूल बाजार बैतूल जिले के सबसे प्राचिन गांवो में से एक है ब्रिट्रिस शासन काल में 1822 तक जिला मुख्यालय एवं परगना मुख्यालय कहे जाने वाले मेरे इस गांव में 390 गांव आते थे . वर्तमान जिला मुख्यालय से मात्र 5 किलो मीटर की दूरी पर भोपाल - नागपुर नेशनल हाइवे 69 पर बसा मेरा गांव आज गांव  है. आज भले ही लोग मेरे गांव को किसी भी व$जह से जानते हो लेकिन पूरे और दुनिया में बैतूल बाजार एक मात्र ऐसा गांव है जो कि मंदिरो , कुओं बावलियो के गांव के रूप में जाना पहचाना जाता है. जबसे यह गांव बना है तबसे लोगो का ऐसा मानना है कि इस गांव के प्रत्येक मकान में एक भगवान भोलेनाथ की शिवलिंग स्थापित मंदिर बने मिलेगें. गांव के हर मकान में एक कोने में मंदिर तथा दुसरे कोने में पीने के पानी के लिए खोदा गया कुआं या बावली अवश्य मिलेगी. सबसे विचित्र बात तो यह है कि मेरे इस गांव को सापना नदी तीन ओर से घेरा बना कर बहती है. गांव के लोगो की भगवान भोलेनाथ के प्रति अगाह श्रद्घा का ही कारण है कि मैं बचपन से लेकर आज तक सोमवार का वृत करती चली आ रही हँू. इस शिव भक्त ग्राम में यदि किसी मकान में मंदिर नही बन सका तो उस मकान मालिक ने अपने खेत और खलिहान में मंदिर बनवा कर भगवान भोलेनाथ की शिवलिंग की स्थापना की है. मुझे आज भी याद है कि हमारे संयुक्त परिवार के लिए बनवाये गये मकान में जगह नही होने के कारण मेरे परदादा ने अपने खेत में मंदिर बनवाया था जो आज भी खण्हर की शक्ल में है. बैतूल बाजार में मेरा पैतृक घर सापना नदी के इस छोर से लगा हुआ है. नदी के दुसरे छोर से लगा खेत और खलिहान है. आज साझा परिवार एक न रहने से सब कुछ बट गया. मकान खेत यहां तक कि खेत वाला मंदिर भी बट गया. सब कुछ बट जाने क बाद भी मंदिर वाले खेत का नाम कोई नहीं बाट सका. मैं बचपन से सुनती चली आ रही थी कि ब्रिट्रिश शासन काल में मेरे गांव में गुड की मण्डी में आने वाला गुड सात समुंद्र पार जाता था. आज सौ दो सौ साल पहले पुश्तैनी खेती में प्राचिन खेती के साधनो से मेरे गांव के खेतो में जो उपज होती थी आज उसका
प्रतिशत भले ही बढ़ गया हो पर मेरे गांव के गुड की मिठास कम हो गई . आज गुड के स्वाद के लिए सरहद पार तक पहचाने जाने वाले मेरे इस गांव के गुड की स्थिति में गोबर से भी बदतर हो गई है. हम भले ही आसमान को छू लेने का प्रयास करे लेकिन वह बेचारा किसान आधुनिक तरीके से रात दिन मेहनत करने के बाद भी अपने परिवार का पेट पालने की स्थिति में नहीं है. बिजली की आँख मिचौली ने उस किसान के साथ ऐसा छल किया है कि वह अब चाह कर भी अपने खेत के कुओ से मोट के माध्यम से पानी निकाल सके. इस त्रासदी के पीछे उसकी कुआं को बुझ कर टुयुबवेल करवाने की भूल जिम्मेदार है . बिजली आएगी तब ही खेत में पानी का इंतजार कर रही फसल लहलहा पाएगी....?
     मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले का कृषि प्रधान मेरा गांव आज की स्थिति में सवा सौ से अधिक कुओ और मंदिरो का गांव है. आज के इस दौर में इस गांव के भी कई कुओ को आपसी बटवारे की मारामारी की वजह से उत्पन्न समस्या के नागपाश ने  निगल लिया. जगह की कमी के कारण गांव के कई कुओ को और मंदिरो को अपना मूल स्वरूप खोना पड़ा . लोगो ने अपने लिए ठौर - ठिकाने बनाने के चक्कर में मंदिरो और कुओ को नही छोड़ा . जिस गांव में रोज शाम हर घर से मंदिरो में घंटी बजा करती थी आज उस गांव की में न तो घंटी बजती है और न पूजा पाठ होती है. ऐसा भी नहीं कि पूरा गांव नास्तिक हो गया है कहने का मतलब यह है कि गांव के आदमी ने खुद को इतना उलझा रखा है कि उसे घर के मंदिर की घंटी से ज्यादा खाद - बिजली - पानी की चिंता सताने लगी है. आज भी मेरे इस गांव के  अप्रवासी भारतीय व्यक्ति द्घारा बनवाये गये मंदिर में भगवान रूक्मिणी बालाजी को देखने उनकी पूजा आरधना करने के लिए देश भर से रोज सैकड़ो लोगो का आना - जाना बना हुआ है लेकिन इसे मैं अपना ही दुर्रभाग्य मानूगी की मेरे इस गांव के मंदिरो की कोई देख - रेख करने वाले न होने के कारण कई मंदिर खण्हर बनते जा रहे है. भगवान भोले शंकर स्वंय लीलाधर नटवर श्री कृष्ण की भक्ति में झुमने बालाजी मंदिर में आने वाले भक्तो को देख कर अपने ही उन भक्तो को अपने तीसरे नेत्र से ढुढंने का प्रयास करे रहे है जिन्होने कभी उन्हे नाचते - गाते मेरे इस गांव के मंदिरो में बिठाया था .
  ऐसा कहा जाता है कि भारत की आत्मा गांवो में बसती है तभी तो भारत को गांवो का देश कहा जाता है.पूरी दुनिया में जितने शहर नहीं होगें उसके अधिक भारत में गांव है मेरे देश की आत्मा में बसे मेरे इस गांव में मेरा बचपन बीता , शादी हुई ससुराल गई  , लेकिन यह एक अजीब बात है कि मैं आज तक अपने गांव को नहीं भूल पाई हँू . जिसके पीछे एक कारण यह है कि इस गांव की गलियो में मेरी उछल कुद और चहल कदमी की थाप मुझे आज भी सुनाई देती है
इति,
रूक्मिणी रामकिशोर पंवार
बैतूल मध्यप्रदेश